मौत कहानी कहती है
गुमनाम कहानी
कहानी कहती है
उनके होने की जो हो सकते थे
पर हो न सके
इस जग में
शामिल
शामिल अपने घर की खुशियों में
अपने बच्चों को चलते देखने में
अपनी माँ को दफ़नाने में
अपने जहाँ में घुमने में
लेकिन वो भी
कहीं विचरण करने चले गए
बहुत दिनों से
बहुत बरस से
बहुत रातों से
बहुत दिनों से
उन रातों से जिनको उसकी बीबी याद करती है
याद करती है
हर दिन रात
कि
उसका पिया रूठ गया
किसी बात पे
वो लौट आएगा
गुस्सा ठंडा होने पर लौट आएगा
पिछले दस सालों से
वो इसी सोच में बैठी है
सोच रही है
बस वो अब आने वाले हैं
दरवाजे पर हवा कि दस्तक भी
उसके आने का आभास करा देती है
पिछले दस सालों से
किसी के पैरों कि आहट
ऐसी लगती है कि
बस अब तो गुस्सा ठंडा हो ही गया
भागकर
खाने को छोड़ कर
दरवाजा खोलती है
बिना धीरज के
पगली सी होकर
अस्तित्वविहीन होकर
अपने साथी से
दस साल बाद मिलने कि
लालसा जो है
दरवाजे कि कुण्डी को श्पर्श
करते ही
खुदा से दुआ करती है
कि वो ही हों
अब बहुत हो चुकी है उसकी जुदाई
अब जिया नहीं जाता
उसके बिना
अब ज़िन्दगी
जहन्नुम बनती जा रहा है
उसके सिवा
तन्हाई में
आज तो दरवाजे खुलते ही
ये तन्हाई
डर के भाग जाएगी
उसके इस घर से अँधियारा मिट जायेगा
और हर तरफ किरण उजियारे कि होगी
उसके बच्चों को उसके अब्बू मिल जायेंगे
उसकी माँ को उसका बेटा
उसके घर को उसका मालिक
उसके बिस्तर को उसका सोने वाला
उसकी साईकिल को उसका सवार
उसके कपड़ों को पहनने वाला
उसकी थाली को खाना खाने वाला
उसके जूतों को पॉंव
और
इस घर
एक नई आत्मा
लेकिन
हाय री किस्मत
उसने आज फिर से धोखा दे दिया
हर रोज़ की तरह
हर शाम की तरह
हर रात की तरफ
हर अंधियारे और उजियारे की तरह
वहां कोई न है
दरवाजे के बाहर कोई न है
है तो सिर्फ बहुत सारे बन्दूक धारी
जो उसकी "हिफाज़त" के लिए है
कुछ दस साल बाद और
वो खड़ी है
कुछ कब्रों के पास
कुछ आठ हज़ार कब्रों के पास
कब्रें
जिनका नाम नहीं है
जिनकी पहचान नहीं है
शायद इन कब्रों में से इक कब्र से उसका भी नाता है
पर अभी तो सब कब्रें उसी की हैं शायद
उसके शौहर की
आठ हज़ार कब्रें
ये गुमनाम कब्रें कुछ बोलना चाहती हैं
लेकिन बोल नहीं पा रहीं हैं
बहुत दिनों से खाना जो न मिला है
इन कब्रों को बोलना है
वो कुछ कहना चाहती है
कहानी अपने होने कि
कि वो कैसे हैं
कहानी उनके होने की
कि वो गुमनाम क्यों हैं
उनके पास कोई नाम क्यों नहीं
आखिर वो कौन हैं
ये कब्रें बोलेंगी
हर एक कब्र से
३-३-लाशें बोलेंगी
हर एक लाश की हर एक हड्डी बोलेगी
टूटी हड्डी
साबुत हड्डी
गोली लगी हड्डी
कटी हड्डी
बूढी हड्डी
हिन्दू हड्डी
मुस्लिम हड्डी
औरत हड्डी
बच्चों कि हड्डी
जवान कि हड्डी
उसके शौहर कि हड्डी
शायद इक सिपाही की भी हड्डी
ये सब हड्डियाँ
बोलेंगी तो
लेकिन इक शर्त है
उमके बोलने की
उन्हें खाना चाहिए,भूंख मिटाने को
उन्हें पानी चाहिए,प्यास बुझाने को
उन्हें कपडे चाहिए,ठण्ड बचाने को
उन्हें बिस्तर चाहिए ,आराम फरमाने को
सुरक्षा चाहिए, सत्ता से
बहुत दिन से
वो भूँखा है
प्यासा है
नींदग्रस्त है
बन्दूक की नोंक पर है
ये हड्डियाँ
जिन्दा हड्डियाँ भी
मौत से डरती हैं
वो नहीं चाहती कि
कोई सरकार उन्हें मार दे
नस्तेनाबूद कर दे
अब हमारी बारी है
उन हड्डियों को
रोटी
पानी
बिस्तर
सुरक्षा
देना होगा
सब देना होगा
उनका उनके हड्डियाँ होने का
राज़ खोलने देना होगा
सबको देशो्ं कि करतूत को कहने देने होगा
तभी ये हड्डियाँ
आराम से
शांति से
अमन से
खा पाएंगीं
पी पाएंगीं
सो पाएंगीं
ताकि
कल और हड्डियाँ
गुमनाम न हों
बेनाम न हों