SHABDON KI DUNIYA MEI AAPKA SWAGAT

Thursday, October 13, 2011

जन्मदिन मुबारक हो -यादों के झरोंखो से

कुछ दिल ने कहा है
कुछ कहने को वो कुछ कह रहा है 
क्या कहूं आज कुछ सब्द नहीं आ रहे है 
कहाँ से शुरूं  करूँ
कुछ ख्याल नहीं आ रहा है 
पहली  वार हो रहा है 
की  कुछ भी याद नहीं आ रहा  
कुछ भी लिखने को 
कुछ भी पढने को 
कुछ भी कहने हो 
कुछ भी बोलने को 
कहीं  सब कुछ भूल चूका हूँ 

कुछ मशक्कत करता हूँ 
कुछ याद आ जाए शायद 
तुम भी याद करने में मेरी 
तरफदारी करना 
जैसे की अब तक करती आई हो
हर एक बात पे

कुछ याद करने को इस गर्मी
और शोर से दूर 
छत पे आ गया हूँ
तेज बारिश हो रही है

इन बूंदों से
उस छतरी 
का ख्याल आया
जो तुम्हारे पास थी
पर हम्हारे हाथ थी

उसके आगे क्या था 
कुछ याद नहीं
थोड़ी मशक्कत कर रहे है 
कुछ याद करने की 
लेकिन ये कम्बख्त बारिश भी 
अपना आपा खो बैठी है
शायद ये भी हम से नाराज़ हो चली है अब
इस बारिश में
कागज़ के भीगने का डर
शब्दों के मिटने का भय
और भी बहुत कुछ
फिर भी खड़े है
छत के बीच में, बारिश में
क्यों
क्योंकि
कुछ याद करने की जिद है

अरे ये क्या 
यहाँ तो पानी भर गया है
और उसमें एक चीटा मर गया है
शायद अब कुछ याद आया 
याद आया थोडा ही सही 
याद तो आया
कुछ कुछ याद आया
वो डेहरा का पुल याद आया
नहीं नहीं पुल नहीं
रोसेल्ला की नदी याद आई
वो नदी जिसे तुम पार न कर सकी थी 
सब जूते भीग गए थे तुम्हारे 
और फिर उन जूतों के भीते 
कुछ याद आया क्या

वो नदी और वो नाव तो याद होगी न
नाव असली नाव नहीं
असली तो कुछ भी नहीं था
कागज़ की नाव
वो नाव जिसको बनाया तो मैंने था
पर छोड़ा तुने था 
इक तेज धार में
नाव तो मैंने भी छोड़ी थी 
तुम्हारे ही साथ
लेकिन ये क्या 
तुम्हारी नाव तो 
कुछ दूर जाकर पलट गयी थी
उलट गयी थी
इस त्तेज धार ने उसे अस्तित्व विहीन कर दिया था
और मेरी नाव बहुत दूर तलक जा रही थी
मेरी आँखे जहाँ तक देख सकतीं थी
वो भागे जा रही थी
हम सब को छोड़ कर 
मस्ती से
तभी एहसास हो चला था
आने वाले दिनों का

नाव की कहनी तो कुछ और भी थी
बस इतना ही याद है
उसके आगे क्या था 
मुझे याद नहीं
शायद तुमको हो........
.........याद है ना............

टन-टन  घंटी बजी है
खाने का समय है
शायद वेज बिरयानी हो आज
अरे हाँ कुछ और याद आया
खाना
मम्मी के हाथ का खाना
भिन्डी की सब्जी और साथ में
नेपकिन लाना 
चार रोटी
तुम हो पेटू
नाश्ते में आलू के ३-३ परांठे लपेटू
भूंख तो लगी है
सुबह से कुछ ना खाया है
और फिर तुमने टिफिन खोला
दो रोटी हमको
और दो रोटी अपने लिए छोड़ा
आम की लौंजी पर तुहारा कब्ज़ा है
कहती हो नहीं इसमें किसी का हिस्सा है
बस इतना ही याद है अभी.......

रुको रुको कुछ और भी याद आया 
farewell  पार्टी 
सुबह सुबह का टहलना 
common  रूम  
नारियल पानी
warden  के घर के सामने की सीढियां 
badminton  कोर्ट में पढाई
शाम को lemon  tea  जाना 
तुम्हारे  पेन से exam 

शायद अब कुछ याद तो आ रहा है
लेकिन याद नहीं आ रहा है
मोबाइल बज उठा है
मैडम बुला रही है
शायद उसे भी lemon  tea  जाना है
नहीं तो गुस्सा जाएगी
और फिर फ़ोन नहीं उठाएगी
चलता हूँ 
फिर कभी याद आएगा 
तो लिख भेजूंगा कुछ यादें 
हमारी और तुम्हारी
जो सिर्फ और सिर्फ हमारी और  तुम्हारी  है
तुम भी कोशिश कर करना 
की शायद तुमको भी कुछ याद रह हों उन सब दिनों का

जो कहना  था वो तो भूल ही गया 
               जन्मदिन मुबारक हो -यादों के  झरोंखो से