तैर कर डूब जाते थे सपने
दो बूँद पानी में तब तो
क्या करे झील सूख गयी है
दो बूँद पानी भी मयस्सर नहीं अब तो..
बिन पानी ये सपने
न तो तैर पाते हैं
और न ही डूब जाते हैं
कुछ चुल्लू भर पानी में
जो कीचड़ बन गया है अब तो
अधमरी मछली की तरह
हर रोज़
सुबह और शाम
फडफडाते हैं अब तो
मैं पूंछता हूँ ऐ खुदा
क्यूँ तू जल्दी से बरसात नहीं कर देता
जिस से की ये सपने
पहले तैरें और फिर डूब जाएँ
हमेशा के लिए
और फिर कभी उठ न पायें
गर ये नहीं कर सकता
तो दे दे ताप सूरज को
कह दे उसे पूरे तेज से तपने को
ताकि उसका ताप इस खीचड़ को सुखा दे
सुखा दे इस सपने की हर सांस को
मनचली की सांस की तरह
मार दे जल्दी से इसे ताकि और दर्द सहना न पड़े
और इस अधमरे सपने को और फदफदाना न पड़े
और हमेशा के लिए इसे इस दुनिया से छुटकारा मिल जाये
अब ये मर जाना चाहता है
हर एक सपना मर जाना चाहता है
बारिश की इक भी बूँद का उसे ऐय्बार नहीं.....
दो बूँद पानी में तब तो
क्या करे झील सूख गयी है
दो बूँद पानी भी मयस्सर नहीं अब तो..
बिन पानी ये सपने
न तो तैर पाते हैं
और न ही डूब जाते हैं
कुछ चुल्लू भर पानी में
जो कीचड़ बन गया है अब तो
अधमरी मछली की तरह
हर रोज़
सुबह और शाम
फडफडाते हैं अब तो
मैं पूंछता हूँ ऐ खुदा
क्यूँ तू जल्दी से बरसात नहीं कर देता
जिस से की ये सपने
पहले तैरें और फिर डूब जाएँ
हमेशा के लिए
और फिर कभी उठ न पायें
गर ये नहीं कर सकता
तो दे दे ताप सूरज को
कह दे उसे पूरे तेज से तपने को
ताकि उसका ताप इस खीचड़ को सुखा दे
सुखा दे इस सपने की हर सांस को
मनचली की सांस की तरह
मार दे जल्दी से इसे ताकि और दर्द सहना न पड़े
और इस अधमरे सपने को और फदफदाना न पड़े
और हमेशा के लिए इसे इस दुनिया से छुटकारा मिल जाये
अब ये मर जाना चाहता है
हर एक सपना मर जाना चाहता है
बारिश की इक भी बूँद का उसे ऐय्बार नहीं.....