SHABDON KI DUNIYA MEI AAPKA SWAGAT

Tuesday, December 27, 2011

तेरे साए अब मेरा पीछा करते हैं

तेरे साए अब मेरा पीछा करते हैंजिधर से निकलता हूँ उधर ही घेर लेते हैं

हर रोज़ निकलता हूँ इक नए लिवास में
और ये रोज़ मुझे नंगा कर देते हैं

तेरे साए अब मेरा पीछा करते हैं

डर से बत्तियां बुझा देता हूँ
अँधेरे में चुपचाप बैठ जाता हूँ
ये चिंगारी से शोले बन
यहाँ आग लगा देते हैं

तेरे साए अब मेरा पीछा करते हैं
जिधर से निकलता हूँ उधर ही घेर लेते हैं

इनसे बचने को
आँखें बंद कर लेट जाता हूँ
सोने के बहाने से
और ये बेदर्दी,जुल्मी,
सपनों में आ आकर
नाहक ही मुझ पर अत्याचार करते हैं
न सोने देते हैं और न जगने देते हैं

तेरे साए अब मेरा पीछा करते हैं
जिधर से निकलता हूँ उधर ही घेर लेते हैं

तरस नहीं आता इन्हें मेरी पथराई आँखों पर
जो महीनों से निंद्रा से नहीं मिली हैं
अब तो तेरे ये
बिन बात के
सौ हाथ के
साए
न रोने देते हैं
न हँसने
न जीने देते हैं
और न मरने

तेरे साए अब मेरा पीछा करते हैं
तेरे साए को मेरी रूह से इतनी मोहब्बत कैसे हो गई
मुझे तो तुझ से भी इतनी मोहब्बत कभी न थी
फिर क्यूँ तेरा साया
  हर शाम.हर सुबह हर रात
  हर सड़क,हर पल,हर पत्ता पत्ता
  हर दरख़्त ,हर ख्हाव,हर नींद
  मेरा पीछा करता है .....
 
तेरे साए अब सिर्फ और सिर्फ मेरा पीछ्हा करते हैं
लगता है अब तो ये मेरी मौत का इंतज़ार करते हैं

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