SHABDON KI DUNIYA MEI AAPKA SWAGAT

Tuesday, April 14, 2020

काश हम बच्चे रहे होते


काश हम बच्चे रहे  होते
फिर तो कोई लफड़े झगडे ही न होते होते भी तो कम देर के
और हम फिर से एक साथ लड झगड खेल रहे होते काश हम सब बच्चे ही रहे  होते गले में डाले हाथ गलियों में फिर रहे होते मोहल्ले के यारों के साथ खेल रहे होते कंचे तो फिर दिल्ली, गुजरात में दंगे  नहीं होते काश हम सब बच्चे रहे होते नाना -नानी के साथ  मेले गए होते  और झूल रहे होते झूला टॉफी के पैसे उन से ले लिए होते तो फिर कलमाड़ी और राजा बन कर  घोटाले नहीं कर रहे होते काश हम बच्चे रहे होते रात जब आती अंधियारी तो मम्मी से चंदा मामा के साथ  लोरीयां सुन रहे होते और रात में घर से निकल हंगामा नहीं कर रहे होते काश हम बच्चे रहे होते घर से निकलते ही माँ काजल का टीका लगा देती और खीर खाने के बाद ड़ाल देती मूंह में चूल्हे की राख काश हम बच्चे रहे होते अब नज़र लगने लगी है  इस दुनियां में मुझे  माँ काला टीका न लगाती जब से बाहर बम फटने लगे हैं तब से  दंगे होने लगे  है तब से  माँ ने मुंह में राख न डाली है जब  से बच्चे न रहे हैं जब से बड़े जो हुयें है तब से  काश हम बच्चे रहे होते  मन के सच्चे रहे होते  इन अंधियारों के भाग नहीं बन रहे होते उजियारों की महफ़िल के साथी बन गए होते 

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