SHABDON KI DUNIYA MEI AAPKA SWAGAT

Tuesday, April 14, 2020

देश के चौराहे पर 
खड़ा था 
दिसंबर भी बहुत बड़ा था 
एक आदमी जो बिन जूतों के
हाथ में कटोरा लिए खड़ा था 
वो ठंडक की कराह  से बोला
ये ठंडक भी अब जान लेके छोड़ेगा 
और न जाने कितने दिन 
सूरज हम से आँख मिचोली खेलेगा 

हमारे देश की सरकार 
सूरज से क्यूँ कुछ बात नहीं करती 
जिससे है यहाँ की सारी
जनता हैं डरती 
कहीं कोई समझौता
तो नहीं कर लिया है 
सरकार ने 
सूरज चाचा के दरबार में 

मेरे पास मेरा भाई भी खड़ा था 
वो बड़ा दयालु सा बन पड़ा था 
और कुछ कह पड़ा था 
हैं भगवान् क्यूँ इतनी सर्दी डालकर 
इसकी जान के पीछे पड़ा हैं,,,,
में भी कह पड़ा 
ये तो सिर्फ सर्दी से मरेगा
जिसको तू सिऱफ देख सकेगा 
पर नहीं देख सकेगा तू उनको 
जो तेरी आँख के सामने नहीं घटेगा 

यहाँ तो अनगिनत लोग कभी 
ठण्ड से मरते हैं 
तो कभी लू से 
कभी भूंख से मरते हैं 
तो कभी क़र्ज़ से 
कभी पुलिस थानों में मरते हैं 
तो कभी जंगल में 
कभी दिल्ली की सडकों  मरते हैं 
तो कभी वादी में 
यहाँ पे औरतों को
जिंदा जलाया जाता हैं 
तो दलितों और आदिवासियों को 
घर हॉस्टल से निकाल के नंगा घुमाया जाता है 

कभी यहाँ के लोगों पे पा लगाया जाता है 
बोलने वालों को आतंकवादी बताया जाता हैं 
कभी यहाँ पे मनोरमा पे आत्याचार होते हैं
और कभी नीलोफर -अशिया जान के रेपिस्ट-हत्यारे 
खुले घूमते फिरते हैं 
और  लोकतंत्र के  पिटारे में 
हम २४.७ का भॊन्पु भोंपते रहते हैं

इन सब को तो सिर्फ और सिर्फ मारा  जाता है 
कभी देसभक्ती के नाम पे 
और कभी झन्डों, गानों की शान पर

नहीं,कभी नहीं मारा जाता इनको 
कभी भी बरमेश्वर के नाम पे 
जो मारते हैं इंसान को 
हिन्दू पंडित ठाकुर की शान पे 

वो नहीं मरे 
वो नहीं मरे 
वो नहीं मरे 

जो मार डाले सारे हिंदुस्तान को 
जो मार डाले भारत के इंसान को   

ये हालत पैदा हो गए हैं 
जो सिर्फ और सिर्फ लड़ने का 
पैगाम छोड़ गए हैं 
तो साथी 
हम लड़ेंगे 
हम लड़ेंगे साथी 
तब तक 
जब तक कि 
हम सब आज़ाद नहीं हो जाते इस गुलामी से
गरीबी की गुलामी से
भूंख से
गैर बराबरी से
जातिवाद से
पित्रसत़़्ता से

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