Semester system..2011 Post
पढ़ाई के आखिर क्या मापदंड होने चाहिए आज भी एक बहस का विषय है, अबी तक तो हम वार्षिक परीक्षा के ज़रिये परीक्षाएं दिया करते थे , इस में हम लोगों को विषय को थोडा समझाने और पढने का एक मौका मिल जाता था क्योंकि लगभग आठ महीने हम विषय को ज्ञान अर्जित करने के सन्दर्भ में पढ़ते थे और आख़िरी दो महीनो में एक्साम के हिसाब से जो की अछे मार्क्स के लिए काफी था , पर्याप्त सोचने का समय भी मिल जाता था और बहुत सारी किताबी जिसमें महापुरुषों की जीवनियाँ और और इतिहास से लेकर फिलोसोफी पढने का एक मौका मिल जाता था जो की बहुत ही आवश्यक है हमारे लिए, लेकिन इस सेमेस्टर सिस्टम ने तो तवाह कर के रख दिया है , हर एक महीने में एक्साम होते है और उसके लिए आपको बैंकिंग सिस्टम की तरह पढना होता है जहाँ आप एक दिन पहले अपने दिमाग में भरो और सुबह जाकर उड़ेल दो परीक्षा में और परीक्षा ख़तम होते हो भूल जाते है सब कुछ , इस भाग दौड़ में न तो कुछ एक्स्ट्रा पढ़ पते है और न ही सोच पते है कुछ अलग , तो यह हमारी प्रतिभायों का क़त्ल करने पर उतारू है जो सिर्फ और सिर्फ मशीने तैयार कर रहा है
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